Friday, December 26, 2008

ग़ज़नी का जलवा-“आमिर सिर के बाल की जगह छाती गोदते तो भी गुदवा लेते” !

सिल्वर स्क्रीन पर क्लोज-अप में आठ पैक। तेज़ संगीत की धुन पर हिंसा का विद्रूप चेहरा। प्यार और चाहत के बीच की धूप-छांव। और इन सब के बीच किसी अपने का आंकलन। यह ‘गजनी’ के पहले दिन पहला शो है। पहला शो देखना किसी भी फिल्म के नायक के फैन्स को पकड़ना होता है। उसमें भी जब आप पर्दे के सबसे नजदीक बैठे हों तो दर्शको के कमेंट आपको उस नब्ज को पकड़ा देते हैं जो पीवीआर और आधुनिक सिनेमाघरो के बनने के बाद से खोता जा रहा है।
24 घंटे पहले हम आमिर खान से सवाल कर रहे थे। नयी नयी कहानियां चुन कर फिल्म बनाने वाले आमिर ने दक्षिण के गजनी को हिन्दी में बनाने का सपना क्यों देखा? और तो और गजनी की नायिका को भी चुराकर अपने साथ खड़ा कर दिया। यानी क्रिएटिव होने का जो सच आमिर के साथ जुड़ा है, वह टूटा तो नहीं। आमिर ने जवाब दिया था-नहीं।
‘गजनी’ देखते वक्त चुराई हुई चीज को भी अपने हुनर से नये सलीके से गढ़ना खूबसूरत सपना देखने की तरह है। वजह आसिन यानी नायिका दक्षिण की है, जो बॉलीवुड को नहीं जानती और शायद आमिर की क्रिएटिविटी को भी । ‘गजनी’ में कमोवेश यह सब हर बार देखने वाले के दिल से टकराता है। इसलिये जब जब आमिर के कद से अभिभूत नायिका के सामने आमिर आते हैं तो आमिर को आमिर नही मानती यानी उस किरदार में नहीं देखती, जिसमें वह फिल्म में मौजूद है । आमिर का फैन कह उठता है....अबे दक्षिण की। कैसे जानेगी। तो दूसरा फैन कहता है गुरु...आमिर सोच कर लाया है आसिन को। न जाने..ना पहचाने...जो है वह असल लगे। यकीनन फिल्म में नायक-नायिका का प्रेम उस ताजे झोके की तरह है, जो दिमाग को भेदता है और सेक्स या बाजार को बिलकुल गायब कर देता है। उन अनछुये पहलुओं के सामने दामन फैलाता है, जो बाजार के प्रेम के लिये किस्सागोई है।
सेक्स के बाजार के लिये पीढियों पुरानी समझ है। लेकिन इसके सामानांतर नायक की त्रासदी आंखे भिगोती है तो नायिका की सरलता उसे पोछने का काम करती है। आसिन ने इतनी सहजता से एक्टिंग की है,जितनी शायद आमिर भी नहीं कर पाए। आसिन ने अपने नाम के अर्थ को आगे ले जाते हुए अभिनय को एक आयाम देने की भरपूर कोशिश की,और इस नायिका की सहज एक्टिंग बॉलीवुड की तमाम अभिनेत्रियों को पछाड़ देती है।
जब जब दर्द उबरता है तो गजनी की खलनायिकी पर नायक की टीस छा जाती है। फैन्स के कंमेट सहजता से आते हैं......यहां सलमान खान को पछाड़ा तो यहां शाहरुख खान को और इस जगह तो सिर्फ आमिर ही चल सकते हैं। कमाल का कैनवास गजनी में आमिर ने खींचा है। फिल्म ना तो आपको रोने देगी....ना डरायेगी...ना बहुत देर कर हंसने देगी...ना ही समूचा सच आपने सामने अंत तक आने देगी । यानी फिल्म एक ऐसी लकीर खिंचती चलेगी, जिसकी डोर में हर कोई लिपटता जाए लेकिन उफ ना करे । किसी अंतहीन कहानी की तरह फिल्म गजनी देखने वाले के भीतर भी इस टीस को भरने से नहीं कतराती कि....अगर फिल्म बनाना या कहना उसका काम होता तो फिल्म वह फिल्म को इस तरह मोड़ता...या इस तरह मोड़ी जा सकती है ।
यानी फिल्म सरोकार की डोर भी पैदा करती है। दर्शको को ऐसा लगे कि वह फिल्म का हिस्सा हो चला है तो फिल्म सफल मानी जा सकती है। कभी राजकपूर...दिलीप कुमार--अमिताभ की फिल्मों का जादू इस सच को उकेरता था। जो बाजार की चकाचौंध में गायब होता गया। आमिर इसे पीरो रहे हैं । इसीलिये अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिये उस धागे को पकड़े रहते हैं, जिसमें उनके फैन्स उनका अक्स देखते हैं। फिल्म फना का आशिक और तारे जमीन पर का बालपन आमिर को देखने वाले की आंखो में हमेशा रेंगता है। इसलिये गजनी में जहां कड़ी टूटती है, वहा आमिर इस अक्स को पकड़ने से भी नहीं चूकते और दर्शको को अपनी छाया में समेट लेते है । माना जाता है कि हीरे की चमक सोने में पिरोने पर ही उभरती है। आसिन को फिल्म में आमिर ने अपने साथ हीरे की तरह ही पिरोया है इसलिये आसिन स्क्रीन पर रहे या ना रहे उसकी चमक हर देखने वाले के दिमाग में बरकरार रहती है । गजनी आमिर का तोहफा है क्योकि उसने हर मोती को जौहरी की तरह पिरोया भी है और खुद जौहरी होने के साथ साथ अपने को मोती की तरह चमक भी दी है। हां, फैन्स को कुछ खलता है तो बिखरा हुआ गीत....जो उनकी जुबान पर...किस्मत से मिले हो तुम....से आगे नही रेंगता । तीन घंटे की गजनी खत्म होते ही पीछे से आवाज आयी.... सर के बाल की जगह अगर आमिर खान छाती गोदते तो हम तो गुदवा लेते....यह नशा होता है पहले दिन पहले शो का।

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