Friday, December 11, 2009

बच्चे....

सोचा था 14 नवबंर को बच्चों के बारे में लिखूंगा । लेकिन हिम्मत पड़ी नहीं...क्योंकि बच्चों के लिये हमने छोड़ा ही क्या है या क्या बना रहे हैं....जो लिखकर संतोष हो। अर्से पहले हरीश चन्द्र पाण्डे की एक कविता पढ़ी थी । याद आ गयी । तो आप भी इसे पढ़ें । इसका शीर्षक ‘बच्चे’ है।

बच्चे
चूंकि बच्चे
विपक्षी की भूमिका नहीं निभा सकते
चूंकि बच्चों की
कोई सरकार नहीं होती
चूंकि बच्चे
अपने खिलाफ जांच में
जेबों के अस्तर तक उलट कर रख देते है
इसलिये बच्चो के बारे में
गंभीरता से सोचो
सोचो
केवल भूख लगने पर ही क्यों रोते हैं बच्चे
ब्रेक फास्ट के समय
राष्ट्रगान गाते हैं बच्चे
हंसी के एवज में
कभी वोट नहीं मांगते बच्चे
बच्चे / पेड़ पर लटके फल होते हैं
इसलिये
संजीदगी से सोचो / बच्चो के बारे में
बच्चों के बारे में किए गए निर्णय
कागज पर कुएं खोदने या
वृक्षारोपण के निर्णय नहीं
बच्चो के बारे में किए गए निर्णय
काली मिट्टी में
कपास उगाने का निर्णय है ।

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