आतंकवाद से बड़ा है बटला इनकाउंटर और बटला से बड़े हैं अमर सिंह और अमर सिंह से छोटी है राष्ट्रीय एकात्मकता परिषद और इस परिषद से छोटा है बटला और बटला से छोटा है आंतकवाद। अब इंडियन मुजाहिद्दीन के आंतक तले सबसे शक्तिशाली कौन है? यह सवाल देश के किसी भी हिस्से में अनसुलझा हो लेकिन दिल्ली के जामियानगर में यह कोई पहेली नहीं है। बटला एनकाउंटर के बाद जामियानगर में जिस जिस के पग पड़े, उसने अल्पसंख्यक समुदाय को उसकी ताकत का भी अहसास कराया और कमजोरी का भी। लेकिन ताकत और कमजोरी दोनों के सामने जामियानगर हार गया। यह बटला एनकाउंटर के इलाके का नया सच है।
बटला एनकाउंटर को लेकर जामियानगर में अगर सवाल दर सवाल ईद से लेकर दशहरा तक घुमड़ते रहे तो इसी दौर में आजमगढ़ में पुलिसिया खौफ भी कम नही हुआ। लेकिन राजनीति के मिजाज ने जिस तरीके से एनकाउटंर को लेकर समूचे तबके को वोटर में तब्दील करने की शुरुआत की और इस मिजाज ने सरकार बचाने और गिराने तक की चाल शुरु की, उसमे जामियानगर को पहली बार समझ में आने लगा है कि इस बार बिसात भी वही है और प्यादा भी वही। ढाई चाल चलते हुये भी वही नजर आयेगा और मंत्री से कटते हुये भी वही दिखायी देगा। यह सभी रंग जामियानगर के भीतर ही मौजूद है...नजर खोलिये...लोगो से मिलिये- सब दिखायी देगा ।
जामियानगर के बटला हाउस यानी एल-18 के दरवाजे पर जाने की हिम्मत किसमें है। यह शर्त जामियानगर के स्कूली बच्चों का खेल है। पुलिस की मौजूदगी वहीं हमेशा रहती है। यूं समूचे जामियानगर पर पुलिस की पैनी नजर लगातार टिकी है लेकिन बटला हाउस के नीचे पुलिसकर्मियो की मौजूदगी है। तो जो शर्त जीत गया उसे बर्फ के गोले से लेकर जुम्मे के दिन किसी नयी फिल्म का टिकट मिल सकता है । इस खेल के कुछ नियम भी हैं, जिसमें बटला हाउस में पुलिस के सवाल जबाव का सामना किये बगैर अंदर जाने से लेकर तीसरी मंजिल तक जा कर लौट आना हिम्मत और शर्त का रुतबा बढ़ा देती है। हसन मिया के मुताबिक, उन्होंने यह खेल ईद के दिन बच्चो को खेलते देखा था। उस दिन तो फटकार कर भगा दिया लेकिन क्या पता था वक्त के साथ साथ यह खेल बढता जायेगा और इसका तरीका-नियम सबकुछ बदलते हुये खेल में बच्चो की रोचकता बढ़ा देगा। पुलिस की मौजूदगी सबसे ज्यादा जामिया यूनिवर्सिटी की तरफ से रिहायशी इलाके में धुसते वक्त है। ऐसे में खास कर यूनिवर्सिटी के दाये तरफ की दीवार के साथ मुड़ते रास्ते को पकड़ कर जो बच्चा बटला हाउस तक पुलिस के सवाल जबाब दिये पहुच सकता है, वह अपने दोस्तों के बीच नया हीरो है। नये हीरो की तालाश जामियानगर के युवा तबके में भी है। बटला हाउस एनकाउंटर में जो मारे गये, उनको लेकर चलने वाली बहस में अचानक राजनीति का ऐसा घोल घुल गया है कि युवा तबके में राजनीति की ओट सबसे कारगर लगने लगी है। जामियानगर में मस्जिद के सामने बनाये गये अस्थायी मंच पर इरफान ने पांव छू कर अमर सिंह को सलाम किया था। जिसे युवा तबका पचा नही पा रहा है। असलम और सादिक जामिया के ही छात्र है और वही हॉस्टल में रहते है । उन्हे अपनों के बीच एक ऐसे हीरो की तलाश है, जो उनके बीच से निकल कर देश के किसी भी हिस्से में संजीदगी से उनकी मुशकिलात को रखने का माद्दा रखता हो । उन्हे यह बर्दास्त नहीं है कि जामियानगर में आकर तो राजनेता उनके घाव को उभार कर मलहम लगाने का सवाल उठाये और जामियानगर की सीमा पार करते ही मलहम को राजनीति का घोल बना लें। इसलिये इरफान को लेकर उनके भीतर आक्रोष है, लेकिन उन्हे लगने लगा है कि तबको में बांटकर राजनीति की जा सकती है, अपने तहके के दर्द को जगाकर राजनीति की जा सकती है लेकिन कोई मुसलमान ऐसा क्यो नहीं है जो देश के तमाम संकटों को लेकर सभी की बात कहने की हिम्मत रखता है।
जाहिर है अपने दर्द को समझने का मिजाज मुशरुल हसन के जरिये उन्होंने समझा है लेकिन उन्हे एक हीरो की तालाश है। उनके बीच अंजुमन एक नायिका जरुर है जो जामियानगर थाने में जा कर पुलिस को यह तमीज सिखा आयी कि बिना महिला पुलिसकर्मियो की मौजूदगी के महिलाओं से पूछताछ नहीं होनी चाहिये। घरों में पूछताछ नहीं होनी चाहिये। उसके बाद से महिलापुलिसकर्मियो की मौजूदगी हर समूह में दिखायी देने लगी है। नायक की तलाश जामियानगर के बडे बुजुर्गो को भी है । असगर के मुताबिक साड़ी का धंधा करने वाले शेख साहेब राजनीति और साड़ी में गजब का तालमेल बिठा कर अपनी अदा पर सबको फिदा करना जानते है , लेकिन नहीं जानते तो मौजूदा हालात के तनाव को । कांग्रेस के इ अहमद साहेब जामिया में आये तो शेख साहेब ने उनके सामने कह दिया कि अब न तो नौ मीटर की साड़ी होती है और नाही असल जननेता । किसी ने सोनिया का नाम लिया तो शेख साहेब बोल पडे जनाब जन नेता का मतलब उस कढाई से है,जो दिखाती है हुनर और होती है बेशकिमती। उसकी बोली नहीं लगती। यहां तो जो आता है सियासत की बोलिया लगाने लगता है ।
संयोग से हमारी मुलाकात भी शेख साहेब से हुई। जब हमने शेख साहेब के बारे में कहे गये जुमलो का जिक्र किया तो शेख साहेब ने सीधे हमीं से यह सवाल कर दिया कि जनाब, आप ही बताइये सोमवार को एनआईसी की बैठक है, इसमें शामिल होगा कौन और बात का मजमून क्या होगा । मेरे मुंह से निकल पडा कि बटला के एनकाउंटर का भी जिक्र हो सकता है और अमर सिंह साहेब तो खुद यहा आ चुके है, और वह एमआईसी के सदस्य भी है। इसलिये इन हालातो में जामियानगर से लेकर आजमगढ़ की बात तो होगी ही। शेख साहेब ने मुस्कुराते हुये कहा, जनाब यही तो आप भी मात खा रहे है। आप भी एनआईसी को अमर सिंह की तराजू में देखने लगे । जो पार्टी के भीतर राजपूत और देस के सामने मौलाना होकर राजनीति की धार पर चलना चाहते है। यह वोट की बाजीगरी है ...और बाजीगरी तभी तक चलती है जबतक बाजी लगती रही । शेख साहेब बोले, जनाब एनआईसी उन्नीस सौ इकसठ में नेहरु की पहल पर बनाया गया था । जिसका मकसद समाज के भीतर धर्म या जाति की खटास को ना फैलने देना था । लेकिन बैठकों के दौर चलते रहे और खटास बढ़ती रही । इन बैठको का सबेस ज्यादा मुनाफा किसी को हुआ तो वह राजनीति है । शेख साहेब के मुताबिक आखरी बडी बैठक 1992 में हुई थी। निशाने पर मंदिर-मस्जिद था । सहमति बनी नही। जानते हो क्यो,उन्होने बेहद रहस्यमयी तरीके से मुझसे पूछा....फिर खुद ही जबाब दिया क्योकि कोई जनता की बात नहीं कर रहा था । चर्चा में आम शख्स की मौजूदगी गायब थी । फिर बोले सोमवार की बैठक में भी जामियानगर से लेकर आजमगढ़ तक पर बात तो होगी और कधंमाल से लेकर कर्नाटक की हिंसा का भी सवाल उठेगा और अभी लिख लो इन बैठको में राजनीतिक हिसाब-किताब देखे जायेंगे। यहां इतने मरे , वहा इतने मरे । दोनो में फर्क कितना है अगर बराबर तो बैठक शांतिपूर्ण रही और अगर यहां ज्यादा मरे और वहा कम मरे तो राजनीतिक गणित में कोई एक बैठक से बाहर निकल कर घमकी भरे अंदाज में शांति की बात करेगा। जामियानगर में मकानों की खरीद फरोखत का सुझाव देने वाले और बिल्डर के नाम से दुकान चलाने वाले अफरोज और राजेन्द्र साझीदार है । दोनो ऑफ-द-रिकॉर्ड बात करते है लेकिन हर मुद्दे पर खुल कर बोलते है । यह ऑफ-द-रिकॉर्ड है , लेकिन सुन लिजिये....बटला एनकाउंटर के बाद से जामियानगर की पहचान बढ़ी है । पहले दिल्ली में जो मकान या दुकान के लिये जामियानगर पहुंचते उन्हे बहुत कुछ यहां के बारे में बताना पड़ता था लेकिन बटला कांड ने जामियानगर की हैसियत बढा दी है । मैने सीधे पूछा, हैसियत कैसे बढा दी..अब तो लोग यहा कम आते होगे....अफरोज ने कहा आफ-द-रिकार्ड है लेकिन यह जान लिजिये, जो हालात है देश में उसमें जामियानगर सरीखे जगह एक तरह का आशियाना है। उन लोगो का जो अच्छा कमाते - खाते है लेकिन हमेशा इस डर में जीते है कि कभी कोई उन्हें किसी मामाले में फंसा कर बंद ना कर दे। इस पर अफरोज के साझीदार राजेन्द्र ने आफ-द-रिकार्ड की बात कहते हुये एक तमगा यह कहते हुये जोड़ दिया कि दिल्ली मुसलमानों का पंसददीदा शहर है क्योकि यहा किसी को भी छेडने पर बवाल मच जाता है। फिर बोला सच बोलूं भाई साहब...मीडिया और राजनीति ने हमारा धंधा बढ़ा दिया है । राजनीति बांट देती है और मीडिया उसे उछाल देती है। अमर सिंह जी आये थे ना ....आप ही लोग तो टीवी में बता रहे थे कि बटला एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग की उन्होंने। और मजा देखिये हमारी तरह वह भी सौदेबाजी करने लगे । मेरे मुंह से निकला अमर सिंह जी ने तो कोई सौदेबाजी नही कि उन्होने तो हालात बताये । इस पर अफरोज आफ-द-रिकार्ड बोल पडा....लेकिन उन्होने ही जांच नहीं तो समर्थन वापस लेने की धमकी तो दी थी...अब यही तो सौदेबाजी है । लेकिन जो कहिये जामियानगर का मामला जितना उछला, उसका असर अब दिखने लगा है....श्रीनगर के हामिद अंसारी साहेब आये थे एक इमारत का सौदा पटाने और सौदा पटा तो बोले दिल्ली में ही डेमोक्रेसी है। यहीं घर लेना ठीक है, कोई छेडेगा तो नहीं । फिर जामियानगर में तो कोई पुलिसवाला छेडेगा नहीं.... । खुली हवा तो यहीं मिलेगी ।
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