Sunday, September 7, 2008

कश्मीर के बहाने एक नया सवाल

बंधु...

आपके कई जवाबों ने मेरे दिमाग में एक नया सवाल पैदा कर दिया है कि अगर देश को कश्मीर चाहिए और कश्मीरी नहीं तो क्या वाकई उदारवादी अर्थव्यवस्था ने जो चाहा उसे मिल गया है ? क्योंकि, न्यू इकॉनमी के दौर में ही यह बात दुनिया भर में उठती रही है कि कैसे आदमी एक प्रोडक्ट में तब्दील हो जायेगा । उसकी जरुरत उसके इर्द-गिर्द के वातावरण के हिसाब से तय होगी। उसके इर्द-गिर्द का वातावरण राज्य के एक तबके के बिजनेस के हिसाब से बनेगा । इस वर्ग या छोटे से तबके के बिजनेस का मूलमंत्र मुनाफा है तो बहुसंख्य तबके की जरुरत भी उसके व्यकितगत मुनाफे के हिसाब से ही तय होगी।

अगर इस प्रभावी छोटे से तबके को लगता है कि देश में अब बच्चो के लिये पार्क-मैदान नहीं होने चाहिये तो नहीं होगे । सिर्फ रिहायशी क्षेत्र होंगे । बच्चों के लिये जिम होंगे,कंप्यूटर होंगे । ऐसी तकनीक होगी, जिस पर बच्चो की उंगलिया रेंगे और बैठे बैठे बच्चे को महसूस हो कि दुनिया उसके सामने है। दुनिया की समूची समझ उसके अंदर है। उसे पता है कि कहां पर कौन किस रुप में मौजूद है। कौन कैसे काम करता है। कैसे जीता है । अच्छा कौन है -बुरा कौन है। उसे सब पता है । इतना ही नहीं उसके अपने स्कूल के बारे में दूसरों की कैसी राय है, वैसी ही राय उसकी भी हो । यानी हर दिन स्कूल में जाने के बावजूद--हर दिन पढ़ने के बावजूद , जो हो सकता है उसे अच्छा न लगता हो या कहें अच्छा लगता हो , लेकिन सूचना तकनीक का प्रचार-प्रसार अगर बच्चे की समझ के उलट बताता है, तो क्या होगा? यानी बच्चे को अच्छा न लगने वाला स्कूल अगर एक ब्रांड है। उसमें पढना सामाजिक हैसियत को बढाता है, तो बच्चा तो वहीं पढेगा ।

मुझे लगता है, हम सूचना तकनीक पर ठीक उसी तरह आश्रित हो गये हैं जैसे बाजार का कोई उत्पाद बेचने के लिये उसके प्रचार प्रसार में लगी कंपनी । सवाल है जो कंधमाल में हो रहा है । जो गुजरात में हुआ । जो कश्मीर में जारी है । जो उत्तर-पूर्वी राज्यो में हो रहा है । जिस हालात से बिहार का कोसी प्रभावित क्षेत्र दो -चार हो रहा है, इन सभी के बारे में सिर्फ पहला शब्द गूगल में लिखे तो समूची सूचना आपके पास आ जायेगी । अब आप इसे सूचना मानते है या जानकारी , हमें तय यही करना है। अगर यह सूचना है तो हमारा काम यही से शुरु होता है..जिसमे इस सूचना की भी एक रिपोर्ट तैयार करना है । यानी सूचना को समूची जानकारी नहीं माना जा सकता । सूचना एक इन्टरपेटेशन है । क्योकि जहां के बारे में सूचना कंप्यूटर देता है, वह उसकी पहुंच के दायरे में सिमटा है । मसलन अगर इंडिया के बारे में गूगल की मदद ली जाये तो आपको परेशानी हो सकती है कि आप किस देश में है । यह अब भी सांप-सपेरे-जादूगर-पंडितों का देश दिखायी देगा। तो तकनीक एक माध्यम है कोई ज्ञान नही है। 

ज्ञानी मनुष्य है, जिसे अपने नजरिए से लोगों से सरोकार करते हुये समझ बांटनी है । और किसी भी नजरिए को स्पेस देना है । जिससे एक स्वस्थ वातावरण बन सके । जाहिर यह वातावरण बाजार को नही चाहिए । उस छोटे से तबके को नहीं चाहिये जो बाजार के नजरिए से राज्य को चलाना चाह रहा है और चलाने भी लगा है । उस तबके को अपने मुनाफे के आसरे एक ऐसा वातावरण चाहिये, जहां सूचना को ही अंतिम सत्य माना जाये और नया विश्व उसी के अनुसार चले । ब्लॉग भी एक माध्यम है । यह कोई ज्ञान का संसार नहीं है । सच तो कमरे से बाहर निकल कर आपस में मिलने और लोगो के साथ वक्त गुजारने पर ही पता चलेगा । सिर्फ तर्कों के आसरे जिन्दगी नहीं चलती है, यह आप भी जानते हैं मै भी समझता हूं......। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि बिना किसी आंतक के इस देश में बहस की गुजाइश बच रही है या वह खत्म हो गयी है । क्योंकि प्रतिक्रिया अगर इस तरीके की हो जो सामने वाले को चेताए कि या तो मेरी सुनो नहीं तो मारे जाओगे-यह खतरनाक है।

खैर अगली चर्चा बंगाल पर।चार दशक पहले किसान चेतना को जगाने वाली वामपंथी राजनीति को अब पूंजीवाद क्यों भा रहा है।

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