Wednesday, September 24, 2008

जामियानगर का आतंक और बाटला हाऊस की तीसरी मंजिल !

दरवाजे पर टक-टक की आवाज होती है। कौन है..अंदर से एक आवाज आती है। बाहर दरवाजा खटखटाने वाला शख्स कहता है मै वोडाफोन से आया हूं। दरवाजा खुलता है । आपसी बातचीत शुरु होती है। जी कहिए...मै वोडाफोन से आया हूं..आपने एक और सिम लेने को कहा था। अंदर वाला शख्स कहता है..जी मैने तो ऐसा कुछ नहीं कहा था। तो आपके साथी ने कहा होगा। आपके साथ कोई और भी रहता है क्या, आप उससे पूछेगे....क्योंकि कंपनी ने मुझे पता तो यहीं का दिया है। अंदर वाला शख्स अपने साथी को आवाज दे कर पूछता है...वोडाफोन वाले को तुमने बुलाया है..कुछ चाहिये । नहीं, मैंने तो कुछ नहीं मंगाया था...यह कहते कहते एक दूसरा शख्स भी दरवाजे तक आ पहुंचता है। लेकिन आ ही गये हो तो कोई नयी स्कीम है तो बता दो जनाब...यह कहते हुये दूसरा शख्स पूछता है...आपको एड्रेस कहां का दिया गया है...दिखाइये। कमीज और टाई लगाया वोडाफोन वाला शख्स एक कागज निकाल कर दिखाता है ।..हां,एड्रेस तो यहीं का है लेकिन जनाब हो सकता है इस बिल्डिंग में रहने वाले किसी और जनाब ने आपको बुलाया हो। बिल्डिंग में छत्तीस लोग रहते है आप पता कीजिये जरुर कोई होगा । वोडाफोन कंपनी से आया शख्स कहता है...हो सकता है लेकिन पहली मंजिल वाले ने मुझे ऊपर भेज दिया था कि तीसरी मंजिल पर जाइये। वहीं पर कुछ लड़के रहते हैं, जो मोबाइल और कम्यूटर रखते है...खैर मै नीचे देखता हूं आप मुझे एक गिलास पानी पिलायेगे । अरे बिलकुल जनाब..आप अंदर बैठिये । दोनों लडके अंदर जाते है..इसी बीच वोडाफोन से आया शक्स मोबाइल से किसी को फोन करता है और बहुत ही छोटी सी जानकारी देता है...पानी लेकर आने वाले शख्स के पहुंचने से पहले ही बात पूरी कर लेता है। पानी आता है तो पानी पी कर यह कहते हुये जाता है कि वोडाफोन का कोई आइटम चाहिये तो बता दीजिएगा। चलता हूं.....दरवाजा बंद होता है। लेकिन पांच से सात मिनट के भीतर ही दरवाजे पर फिर टक टक होती है। और इस बार बाहर से कोई जोर जोर से खटखटाते हुये सीधे कहता है ...अबे खोल...खोलता हे कि नहीं ..खोल दरवाजा । अंदर से भी उसी अंदाज में आवाज आती है...अबे खोलता हूं..रुक काहे ठोके जा रहा है । दरवाजा खुलते ही गोलियो की आवाज कौघने लगती है और समूची बिल्डिग में अफरा तफरी । उसके बाद क्या हुआ यह सभी को मालूम है । क्योंकि उसके बाद उस कमरे से मरे लोगो को ही निकलते हमने देखा। एक पुलिस वाला भी खून से लथपथ देखा और टाई पहने उस एक शख्स को भी देखा जो खून से लथपथ पुलिसवाले को सहारा देकर ले जा रहा था । बाद में पता चला टाईवाला भी पुलिस का आदमी है । स्पेशल सेल का । और उसने जिसे मोबाइल से फोन किया खून से लथपथ इंसपेक्टर शर्मा थे..जो सिग्नल का इंतजार कर रहे थे। जिन्होंने दरवाजा खुलते ही गोलियां दागी । और उन लडकों ने भी गोलिया दागीं ।यह कहानी हो या हकीकत, लेकिन जामिया नगर के बाटला हाउस में जुमे के दिन जो हुआ उसका कच्चा-चिट्टा कुछ इसी तरह सोमवार को सामने आया । बाटला हाउस में जो हुआ उसपर कितनी खामोशी है और कितना खुलापन इसका एहसास जामियानगर में बाहर से अंदर जाते वक्त ही हुआ । वाकई दिल्ली के भीतर एक दूसरी दिल्ली बसी है जामियानगर में। कांलदीकुंज से जामियानगर की तरफ जाते वक्त पहली बार लगा जैसे कश्मीर के शोपांया के इलाके में जा रहे हैं। वहां हर कदम पर सेना का पहरा किसी को भी बेखौफ आंगे बढ़ने नहीं देता । यहां भी पुलिस के बैरीकेट और उसकी मौजूदगी हर सहम कर चलते शख्स को रोक कर पूछताछ करने से नही चूकती। लेकिन घाटी सेना की मौजूदगी को लेकर अभ्यस्त है, जबकि जामिया नगर की पहचान बेखौफ आवाजाही की है। सुबह हो या रात, लोगो की आवाजाही रात के अंधेरे को भी घना नहीं होने देती । वहां पर दिन में घुमने-टहलने के दौर में खाकी वर्दी की मौजूदगी ने पहली बार उस जामिया की पहचान को तोड़ दिया है, जो दिल्ली के भीतर किसी छोटे शहर की महक देती रही है। नयी दिल्ली में कहीं मुस्लिम की पैठ सबसे ज्यादा है तो जामिया नगर में ही है । जामिया यूनिवर्सिटी का मोह अगर पढ़ने के लिये युवाओं को यहां तक पहुचा देता है तो छोटे छोटे शहर में बढ़ते बाजार की वजह से बेरोजगार हुनरमंदो का भी सराय यही जामियानगर है। जामिया यूनिवर्सिटी से जामिया नगर में घुसते हुये यह एहसास तो साफ छलका कि बाटला की घटना ने हर निगाह में शक पैदा कर दिया है। कोई कुछ कहता नहीं । पूछने पर हिकारत की नजर या फिर खाकी वर्दी को दिल्ली का सच मान कर चुप रहने की हिदायत हर नजर देती है। आम लोग और खाकी के बीच कितनी दूरी है या राज्य और जनता के बीच संवाद कैसे बंद होता है उसका एहसास जामिया नगर में हर क्षण होता है। क्योंकि यहां कोई चाह कर भी अकेले अपने बूते रह नहीं सकता या कहे जी नहीं सकता।जामिया नगर में लोग अपने गांव या छोटे शहरो से कट कर नहीं पहुंचते बल्कि जड़ों को लेकर यहां पहचते हैं। इसलिये कोई ऐसा है ही नहीं जो दिल्ली की भागम-भाग में खो कर अकेलेपन में जी रहा हो । इसलिये बाटला को लेकर जामिया नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक किस्से-कहानी अनेक है, लेकिन सवाल कमोवेश एक से है । जामिया के भीतर जैसे जैसे आप घुसते जाते है खाकी वर्दी कम होती हुए गायब होने लगती है । और लोगो की निगाहो में बसा शक भी धूमिल हो जाता है। बाटला में रहने वाले अगर जुमे यानी शुक्रवार के दिन बाटला की घटना को सिलसिलेवार बताते है तो किसी चक्रव्यू की तरह बसे जामिया नगर में घुसते हुये कई सवाल खड़े होते चले जाते है जिनका ताल्लुक बाटला या जामियानगर से नहीं बल्कि उन शहरो से होता है जहां पलायन हो रहा है। और दिल्ली आने के लिये लोग मजबूर हैं। आजमगढ में सरायमीर भी है और मुबारकपुर भी। आरोपी अबु बशर तो सरायमीर का है, लेकिन मोहम्मद आफताब मुबारकपुर का है। अस्सी के दशक तक इनके परिवार की उगलियां बनारसी साड़ी को कढाई के जरीये एक नयी पहचान देती थी । नब्बे के दशक में यह पहचान सस्ती या नकली बनारसी साडियों के नाम पर मिलने लगी और पिछले एक दशक में मुबारकपुर छोड जामिया में बेहतरीन चाय बनाने की पहचान मिली हुई है। मोहम्मद अफताब का सवाल सीधा है मशीन से तो हमारी हुनरमंदी मात खा गयी लेकिन देश के नये हालातो में क्या जिन्दगी मात खायेगी। वहीं कैफी आजमी के गांव मैहजीन के मोहम्मद आसिफ होटल मैनेजमेंट की पढाई कर रहा है। जायके के शौकिन आसिफ को शारजहा में काम मिल रहा था लेकिन पढ़ने और अपने मुल्क की चाहत में आसिफ मा-बाप के कहने पर भी शारजहां नही गया, जहा मोटी कमायी होती। अब उसका सवाल है..मै कहां लौटूं । चाहता हूं एड्रेस में मुल्क का नाम इंडिया लिखा रहे। लेकिन यहां तो मोहल्ले दर मोहल्ले को ही मुल्क का नहीं माना जा रहा। पिछले 72 घंटो से हर दिन की तरह रात दस बजे लौटता हूं तो पुलिस घर तक साथ आती है। सामान टटोलती है फिर कुछ भी सवाल पूछती है, जिसका जबाब टालने पर अंदर करने की धमकी देती है। आसिफ तल्खी के साथ कहता है कि सवाल भी सुन लीजिये । बिरयानी बनानी आती है तो बम बनाना भी आता होगा। हमें बिरयानी खिलाओगे या बम मारोगे । चूडियां बेचने वाले अखलाख का सवाल कहीं ज्यादा त्रासदी भरा है। अखलाख कम्यूटर साइंस का विघार्थी है । फिरोजपुर का होने की वजह से चूडियो के धंधे से भी जुड़ा है । थोक में चूडियां लाता है और फुटकर विक्रेताओं को बेच देता है । संयोग से चूडिया लेकर वह रविवार के दिन जामियानगर पहुंचा तो सामान देखने के बाद पुलिस को जब उसके कम्पयूटर साइंस की पढ़ाई करने के जानकारी मिली तो पहला सवाल था बाटला की घटना जानने के बाद भी उसने लौटने की हिम्मत कैसे की। तीन घंटे तक पुलिस की निगाह के सामने रहने के दौरान आसिफ की सोलह दर्जन चूडिया टूटीं । मोबाइल के सभी मैसेज को पुलिस ने पढ़ा। घर में रखे कम्पयूटर और टेक्नॉलॉजी के सारे सामान पुलिस ने जांच के लिये अपने पास रख लिये लेकिन जब पता चला कि आसिफ के चाचा कांग्रेस से जुडे नेता है और राहुल गांधी की उत्तरप्रदेश यात्रा को सफल बनाने में लगातार जुटे रहे तो आनन-फानन में आसिफ को छोड दिया गया।बाटला की घटना पर खामोश रहते हुये आसिफ ने यह जरुर कहा कि दिल्ली और फिरोजपुर की दूरी इस घटना ने जरुर बढा दी है । जामियानगर में सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही नहीं बिहार-बंगाल-आंध्र प्रदेश- महाराष्ट्र से लेकर कश्मीर तक के लोग हैं। जो अपने अपने गांव-शहरो की मुश्किलात से जुझने के लिये दिल्ली पहुंचे हैं। पुरानी दिल्ली में कभी भी कोई भी खाकी वर्दी में उन्हे धमका सकता है लेकिन जामिया नगर में खाकी धमकी से उन्हे राहत है। लेकिन नये हालात में नया ठिकाना क्या रखें यह सवाल गुटके की दुकान चलाने वाले खालिद ने भी पूछी और बेकरी के मालिक रजा खान ने भी। करीब पांच घंटों के दौरान जब कोई ऐसा शख्स नहीं मिला जो बाटला के सच को बिना सवाल के कहे तो लौटते हुये दोबारा बाटला हाउस पहुचा और देखा पुलिस का जमघट बढ़ गया है क्योंकि मारे गये आरोपी आंतकवादियों के शव यहां लाए जाने हैं। संयोग से वही शख्स दोबारा सामने आ गया जो सुबह मिल कर उस दिन की घटना के मिनट्स की जानकारी दे रहा था, इस बार बिना पूछे ही उस शख्स ने मुझे देखकर मुझसे कहना शुरु कर दिया , कैसे कैसे लडके दहशतगर्दी फैला रहे हैं। ब्लास्ट कर दिया और खुद खुशियां मना रहे थे। खुदा इन्हें कभी माफ नहीं करेगा। मै कोई सवाल करता, इससे पहले ही वह एक सांस में यह कहकर चल दिया । मै भौचक था , यह शख्स महज चार घंटो में बदल गया। क्या वाकई इनपर भरोसा नहीं किया जा सकता है...यह सोच कर मैं जैसे ही मुड़ा.. मैंने अपने पीछे पुलिसकर्मियो की टोली को खड़े पाया । अब सवाल मेरे सामने था ....जामियानगर का सच बाटला से निकल कर लोगो के जहन में पैदा होते अविश्वास के इस खौफ और आंतक का तो नहीं है। बांटती राजनीति और संवाद खत्म करती पुलिस की सफलता कहीं आंतकवाद के खिलाफ एक नये आंतक को तो नही परोस रही जो बाटला से कहीं आगे निकल चुकी है। ऐसे में इसे पाटेगा कौन...यह सवाल अनसुलझा है।

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